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फरेंदा में मांझी का बजेगा शंख या भारी पड़ेगा वीरेन्द्र का पंजा, साइकिल व हाथी की रेस में कौन जीतेगा नौतनवा, सिसवा की सियासत में क्या पक रही खिचड़ी? जानें किस ओर करवट ले रही जिले की राजनीति!


महराजगंज टाइम्स ब्यूरो:- 
विधानसभा चुनाव में नामांकन के बाद जिले की चौतरफा सियासी बयार देख बड़े-बड़े सियासी विश्लेषक भविष्यवाणी को रोक वेट एंड वॉच की मुद्रा में आ गए हैं। नामांकन के पहले तक भाजपा व सपा में सीधी लड़ाई का दावा ठोंकने वाले व बसपा को गिनती में शामिल करने से कतराने वाले दो विधानसभाओं में हाथी की चाल देख अपने सियासी समीकरण के आंकड़े को नए सिरे से दुरूस्त करने में जुट गए हैं। कांग्रेस को चुनाव से पहले ही लड़ाई से बाहर बताने वाले फरेंदा क्षेत्र की हालात देख किसी खास दल की जीत का दावा करने से परहेज करने लगे हैं।पांचों विधानसभा क्षेत्र में चुनाव परिणाम को लेकर उहापोह की स्थिति बन गई है। कोई यह नहीं तय कर पा रहा है कि फरेंदा में मांझी का शंख बजेगा या वीरेन्द्र चौधरी का पंजा भारी पड़ेगा। बजरंगी जीत को दोहरा पाएंगे की नहीं। बसपा की ईशू चौरसिया किसका सियासी समीकरण बिगाड़ेंगी! नौतनवा विधानसभा क्षेत्र में साइकिल व हाथी की रेस में कौन आगे निकलेगा, इसका भी सटीक दावा नहीं हो पा रहा है। ऋषि त्रिपाठी का थाली भरा भोजन जनता खाएगी या हाथी सटक लेगी, यह भी कोई बता नहीं पा रहा है। बड़े-बड़े सियासी विश्लेषक सिसवा विधानसभा के पल-पल बदल रहे समीकरण को देख अगले तीन-चार दिन के बाद ही कुछ बता पाने के मूड में हैं। महराजगंज टाइम्स की टीम जिले की तीन प्रमुख विधानसभा क्षेत्र के सियासी चौराहों पर जनता के बीच जो बहस चल रही है उसको आपके सामने रख रही है।
सिसवा: शिवेन्द्र सिंह के रण छोड़ने के बाद बढ़ी सियासी उलझन
सिसवा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को सबसे बड़ा विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सपा छोड़ भाजपा में आए पूर्व मंत्री व कई बार के विधायक शिवेन्द्र सिंह को टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दल प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया। पन्द्रह साल से सिसवा विधानसभा में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ भाजपा युवा नेता व पत्रकार अजय कुमार श्रीवास्तव का सब्र भी टिकट नहीं मिलने से टूट गया। वह भी निर्दल ही इस चुनावी अखाड़े में कूद चुके हैं। भाजपा से ही टिकट मांगने वाले धीरेन्द्र प्रताप सिंह अब हाथी पर सवार हो चुके हैं। यहां बसपा ने अपने महावत को ही बदल दिया। प्रमुख दावेदारों में गिने जा रहे व जातीय समीकरण में फिट बैठ रहे श्रवण पटेल का टिकट काट धीरेन्द्र प्रताप सिंह को बसपा ने प्रत्याशी बना दिया। इसमें से स्टेट परिवार से ताल्लुक रखने वाले शिवेन्द्र सिंह उर्फ शिव बाबू ने मंगलवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म से चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया। इससे भाजपा प्रत्याशी व विधायक प्रेमसागर पटेल की राह का एक बड़ा कांटा निकल गया, लेकिन वरिष्ठ भाजपा युवा नेता अजय कुमार श्रीवास्तव चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। उनकी सोशल मीडिया टीम बेहद स्ट्रांग हैं।वह क्षेत्र का सघन दौरा भी कर रहे हैं। उनके खेमे में उमड़ रही भीड़ भाजपा प्रत्याशी की उलझन बढ़ाए हुए है। यही वजह बताया जा रहा है कि वर्तमान विधायक व भाजपा प्रत्याशी अजय श्रीवास्तव को मनाने के लिए उनके आवास पर गए। लेकिन क्षेत्र में अजय कुमार श्रीवास्तव के प्रचार-प्रसार को देख लोग यह कह रहे हैं कि वह चुनावी मैदान से पीछे नहीं हटेंगे। शिवेन्द्र सिंह ने चुनाव का मैदान छोड़ने के बाद अपने पोस्ट में सांसद पंकज चौधरी व भाजपा प्रत्याशी प्रेमसागर पटेल को बधाई दी है। उनके पीछे हटने से अन्य प्रबल दावेदार उनका अप्रत्यक्ष समर्थन लेने की होड़ में दिख रहे हैं। बसपा की हाथी पर सवार होकर धीरेन्द्र प्रताप भी अपनी जीत को लेकर चिघाड़ रहे हैं। वह सिसवा क्षेत्र के रहने वाले हैं। पिता ब्लाक प्रमुख भी रह चुके हैं। गंवई सियासत में उनको महारत हासिल है। ऐसे में वह स्थानीय बनाम बाहरी की सियासी पुरवाई बहाने की जुगत में है। सपा प्रत्याशी व पूर्व राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त सुशील कुमार टिबड़ेवाल खुद को सिसवा का मूल निवासी बताकर वैश्य वोट को अपने पक्ष में खींचने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। शिव बाबू के चुनाव मैदान से हटने के बाद यह तय है कि सिसवा कस्बा से जो लीड लेगा वह मतगणना के अंत तक बना रहेगा। सपा प्रत्याशी के पुत्र मनोज टिबड़ेवाल देश के बड़े पत्रकारों में से एक हैं। डीडी न्यूज में रहते हुए वह प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को कवर कर चुके हैं। लोगों में मिलनसार भी हैं। सिसवा विधानसभा के कई क्षत्रपों से उनके मधुर रिश्ते हैं। वह सभी को लामबंद कर पिता की जीत को अपने प्रतिष्ठा का सवाल बना चुके हैं। लगातार वह भी क्षेत्र में बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से अपने संबंधों के आधार पर जहां कहीं सियासी समीकरण बिगड़ रहा है उसको दुरुस्त करने के लिए क्षेत्रीय लोगों की कन्वेंसिंग करा रहे हैं। नामांकन के बाद जो स्थिति स्पष्ट हुई है उसे देख लोग यह कह रहे हैं कि भाजपा, बसपा, सपा व निर्दल प्रत्याशी अजय कुमार श्रीवास्तव के बीच ही चतुष्कोणीय मुकाबला होगा। पर, पिछले दो दशक से सिसवा की सियासत में बने रहे व नामांकन से पहले सपा से टिकट मांग रहे ईं. आरके मिश्रा अब निर्दल होकर आंसू बहा रहे हैं। जनता से वोट मांग रहे हैं कि या तो समर्थन दीजिए या फिर कफन का इंतजाम कर दीजिए। जनता उनकी तरफ भी नजर बनाए हुए है। कांग्रेस प्रत्याशी राजू गुप्ता को टॉप फोर से बाहर रखने वाले उनके जन संघर्ष व किसान नेता की छवि से घबड़ाए हुए हैं। निचलौल ब्लाक व ठूठीबारी क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव है। ऐसे में जनता किसकी खिचड़ी पकाएगी, यह दावे के साथ कोई भी नहीं कह पा रहा है। अन्य निर्दल भी चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को बेकरार हैं, लेकिन अधिकांश लोगों को न तो उनका नाम पता है और ना ही चुनाव चिन्ह आवंटन हुआ है। ऐसे में उनकी राह मुश्किल हो सकती है। पर, यह भी सही है कि राजनीति में जनता किसी भी उलेटफेर का माद्दा रखती है। मतगणना के बाद ही चुनाव परिणाम स्पष्ट हो पाएगा। 
नौतनवा में त्रिकोणीय लड़ाई बनाने की जुगत में भाजपा गठबंधन
जिले की सबसे चर्चित विधानसभा क्षेत्र में सीधी लड़ाई वर्तमान विधायक व बसपा प्रत्याशी अमन मणि त्रिपाठी व सपा प्रत्याशी कुंवर कौशल किशोर सिंह उर्फ मुन्ना सिंह के बीच ही मानी जा रही है लेकिन भाजपा  गठबंधन इस सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई बनाने की जुगत में है। पिछले चार दशक से दो परिवारों के बीच सियासी द्वंद से उब चुके लोगों पर भी भाजपा गठबंधन अपने डोरे डालने की लगातार कोशिश कर रही है। पिछले चुनाव में निर्दल प्रत्याशी अमन मणि करीब 37 फीसदी वोट पाकर विधायक बने थे। इस बार वह हाथी पर सवार हो चुके हैं। सपा प्रत्याशी कुंवर कौशल सिंह को पिछले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार अपनी जीत को लेकर वह पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उनके समर्थकों का यह मानना है कि विधायक अमन मणि से जनता असंतुष्ट है। उसका लाभ मुन्ना सिंह को ही मिलेगा। इसके अलावा मुस्लिम व यादव फैक्टर भी इस बार सपा के ही पक्ष में है। ऐसे में समर्थकों का मानना है कि वह आसानी से चुनाव जीत सकते हैं। वहीं अमन मणि का खेमा का यह दावा ठोक रहा है कि जीतेंगे तो अमन ही!अगर कुछ वोट छिटकेंगे तो बसपा का भारी संख्या में कैडर वोट सभी डैमेज कंट्रोल को पूरा कर देगा। भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार ऋषि त्रिपाठी की भोजन भरी थाली वोटरों को कितनी तादात में अपनी तरफ़ आकर्षित कर पाएगी यह भविष्य की गर्त में है। चार प्रमुख दलों में तीन ब्राह्मण उम्मीदवार हैं। अमन मणि, ऋषि त्रिपाठी व कांग्रेस प्रत्याशी सदामोहन उपाध्याय ब्राह्मण वोटरों को कितना सहेज पाएंगे, इस पर भी स्पष्ट रूप से कोई जवाब देने को तैयार नहीं है। फिलहाल यहां त्रिकोणीय लड़ाई बन रही है। लोगों का मानना है कि अमन, मुन्ना व ऋषि में से ही कोई एक चुनावी मैदान मारेगा। इस लड़ाई के लिए उनके वार रूम का समीकरण कितना सफल होगा, यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। कांग्रेस प्रत्याशी सदामोहन भी अप्रत्याशित परिणाम ला सकते हैं, इस सवाल पर कई लोगों का यह कहना है कि वह स्थानीय हैं। स्वच्छ छवि के हैं। जनता का मूड है कुछ भी कर सकती है। 

फरेंदा में मांझी का शंख व ईशू के हाथी की चाल से दिग्गजों के बिगड़ रहे समीकरण
जिले की फरेंदा विधानसभा सीट से तीन बार के विधायक रह चुके भाजपा प्रत्याशी बजरंग बहादुर सिंह को इस बार पिछले पांच चुनावों से लगातार दूसरे स्थान पर रहने वाले कांग्रेस प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी से कड़ी टक्कर मिल रही है। पहले भाजपा में रहीं ईशू चौरसिया इस बार बसपा प्रत्याशी के रूप में हाथी पर सवार हो गई हैं। बसपा के कैडर वोट व कुछ मुस्लिम मतों के साथ ईशू को अपने चौरसिया बिरादरी के वोटों पर पूरा भरोसा है। चौरसिया बिरादरी के बारे में यह बताया जा रहा है कि यह पहले भाजपा का वोट बैंक था। पर, इस बार इस बिरादरी में बिखराव के आसार हैं। सपा ने स्थानीय सपा नेताओं को दरकिनार कर पूर्व मंत्री शंख लाल मांझी को अपना उम्मीदवार बनाया है। क्षेत्र में उनको पैराशूट नेता के रूप में बता कर विरोधी अपनी सियासी गोटी सेट करने में जुटे हैं, लेकिन क्षेत्र में निषाद बिरादरी के वोटरों की भी अच्छी खासी तादात है। यह वोटर भी भाजपा के बताए जाते रहे हैं। इस बार उनका रूख कैसा रहेगा, यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। इसके अलावा सपा को अपने वाईएम फैक्टर पर पूरा भरोसा है। मांझी भी अपना शंख बजाना शुरू कर दिए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि शंख की ध्वनि वोटरों के कितने शिखर तक पहुंचने में कामयाब रहती है। कांग्रेस प्रत्याशी वीरेन्द्र चौधरी के पक्ष में मर्सी वोट फैक्टर बनाने की मुहिम शुरू है। पूर्व ब्लाक प्रमुख व कद्दावर नेता रामप्रकाश सिंह वीरेन्द्र चौधरी को अपना समर्थन दे चुके हैं। यह नारा बुलंद किया जा रहा है कि पांच बार का हारा है, वीरेन्द्र बेचारा है!यह नारा कितना असरदार साबित होगा यह जनता के वोट से ही तय होगा, लेकिन वर्ष 2015 के उप चुनाव में हार के बाद सत्रहवीं विधानसभा में वापसी करने वाले भाजपा विधायक व प्रत्याशी बजरंग बहादुर सिंह का चुनाव लड़ने का अपना स्टाइल है। इस बार वह जीत का चौका मारने के लिए आतुर हैं। विरोधी को सियासी मैदान में चित्त करने के लिए वह अपने सभी सियासी दाव-पेंच को आजमाने से नहीं चूकेंगे।

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