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बेसिक शिक्षा विभाग जिले में बच्चों को पढ़ाने पर हर साल खर्च करता है चार अरब, पर 73 फीसदी बच्चे पढ़ने में निपुण नही

 

महराजगंज टाइम्स ब्यूरो:- 
प्राथमिक शिक्षा केंद्र व प्रदेश सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में से एक है। लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से सरकारी पैसा पानी की तरह बह रहा है। शासन का उद्देश्य औंधे मुंह है। बानगी के लिए महराजगंज बेसिक शिक्षा विभाग की रिपोर्ट ही काफी है। स्थिति यह है प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले 73 फीसदी बच्चे पढ़ाई में निपुण नही हैं। निपुण का मतलब यह है कि कक्षा एक में पढ़ने वाला बच्चा दो अक्षर वाले पांच शब्द जैसे जल, कल, फल को पढ़ ले। कक्षा तीन का छात्र एक मिनट में साठ शब्द पढ़ ले। रिपोर्ट बताती है कि महज 27 फीसदी बच्चे ही निपुण हो पाए हैं। सरकारी स्कूल से अच्छे तो प्राइवेट विद्यालय हैं। जहां कक्षा तीन फर्राटेदार हिंदी व अंग्रेजी पढ़ ले रहे हैं। कक्षा के पाठ्यक्रम के हिसाब से गणित के सवालों का भी झट से जवाब बता देते हैं। यह स्थिति तब है जब सरकार महराजगंज जिले में बच्चों को पढ़ाने व पठन पाठन की निगरानी करने वाले प्रधानाध्यापक, शिक्षक, सभी खंड शिक्षा अधिकारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आशीष कुमार सिंह के अलावा सभी जिला समन्वयकों के वेतन भुगतान पर हर साल चार अरब रुपया खर्च कर रही है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि इतना खर्च करने के बाद भी जिले का बेसिक शिक्षा विभाग लक्ष्य से कोसो दूर क्यों है। इसका आसान जवाब यह है कि जब सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी, अधिकारी निरीक्षण व अनुश्रवण नही करेंगे तो बच्चा कैसे पढ़ेगा और सीखेगा समझेगा।
थर्ड पार्टी डायट के टेस्ट से सामने आई सच्चाई
निपुण भारत अभियान के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हुआ। संकुल शिक्षक, एआरपी, एसआरजी के अलावा सभी बीईओ के अलावा खुद बीएसए निपुण भारत के लक्ष्य को पूरा करने का खोखला दावा किया। इसी बीच शासन ने परिषदीय विद्यालयों में निपुण भारत की स्थिति की जांच कराने के लिए थर्ड पार्टी के रूप में डायट को जिम्मेदारी सौंपा। डायट ने स्कूलों में बच्चों के निपुणता का टेस्ट कर रिपोर्ट शासन को भेज दिया। उसमें जिले के 27 फीसदी बच्चे ही मानक पर खरा उतरे। इससे शासन से लेकर जिले तक खलबली मची। विभाग ने फिर से जांच कराया। उसके बाद विभाग ने स्पॉट असेसमेंट कराया। जिसमें 61 फीसदी बच्चे निपुण मिले। विभाग के स्पॉट असेसमेंट को ही सच मान लिया जाए तो 39 फीसदी बच्चे पढ़ाई में निपुण नही हैं। निपुण लक्ष्य में प्रदेश में सबसे खराब पंद्रह जिलों की सूची में महराजगंज पांचवे स्थान पर है।
परिषदीय विद्यालयों में खराब पढ़ाई देख सामान्य वर्ग के अभिभावकों ने मुंह फेरा

बेसिक शिक्षा विभाग में सेलरी, एमडीएम, कन्वर्जन कास्ट, ड्रेस, कंपोजिट ग्रांट व अन्य मद में सरकार से मिलने वाली धनराशि को मिलाकर पढ़ाई से तुलना करें तो साल भर में प्रत्येक बच्चे पर बीस हजार रुपए से अधिक धनराशि खर्च हो रही है लेकिन पढ़ाई की गुणवत्ता बेहद खराब है। शायद यही वजह है कि सामान्य वर्ग जिनको आरक्षण का लाभ नही मिलता है वह अपने बच्चों को परिषदीय सरकारी स्कूल में पढ़ाने से कतराते हैं। परिषदीय विद्यालय में पढ़ने वालों बच्चों में दस फीसदी भी सामान्य वर्ग के बच्चे नही है। क्योंकि उनके अभिभावक बच्चों का दाखिला परिषदीय विद्यालय में इसलिए नहीं पढ़ाते हैं कि वहां कुछ बच्चा सीख ही नही पाएगा। पढ़ाई में कमजोर हो जायेगा। फिर आगे चलने के बाद वह कुछ समझ नहीं आने पर विद्यालय छोड़ देगा।
"शिक्षक नही एसआरजी हैं"
गांव गांव सरकारी विद्यालय खुले हैं। योग्य शिक्षक तैनात हैं। विद्यालय की भौतिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रदेश सरकार ऑपरेशन कायाकल्प से जिले में करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। स्कूल में बच्चों को दोपहर का भोजन के अलावा समय समय पर दूध व फल दिया जा रहा है। इसके बाद भी जिले में बेसिक शिक्षा विभाग निपुण लक्ष्य क्यों हासिल नहीं कर पा रहा है। इस सवाल पर गौर करेंगे तो अफसरशाही ही मूल वजह के रूप में सामने आएगी। निपुण भारत मिशन के पर्यवेक्षण के लिए एआरपी, एसआरजी, सर्व शिक्षा अभियान के तहत जिला समन्वयक नियुक्त हैं। एआरपी व एसआरजी का चयन तो शिक्षकों में से ही हुआ है लेकिन चयन के बाद वह अपने आप को शिक्षक मानने को तैयार ही नहीं हैं। लवकुश वर्मा नाम के एसआरजी से निपुण भारत मिशन पर बात करने पर वह ढेर सारी किताबी ज्ञान को बताया। यह पूछने पर कि क्या आप शिक्षक हैं? इस सवाल पर उन्होंने से जवाब दिया कि वह शिक्षक नही एसआरजी हैं। यही भावना लक्ष्य ने बाधा बन रही है। सब आदेश व निर्देश देने में जुटे हैं। इसमें जिम्मेदारी पीछे छूट जा रही है। निपुण लक्ष्य की स्थिति केवल एसआरजी व एआरपी के विद्यालयों में चेक कर लिया जाए तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। कुछ एआरपी खंड शिक्षा अधिकारियों के ड्राइवर बन गए हैं। इसका असर यह है इस समय नामांकन पर विभाग का जोर है लेकिन शिक्षकों को ढूंढने से भी बच्चे नही मिल रहे हैं।

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